



पूज्य बापूजी ने कत्लखानों में जाती गायों को जीवनदान देकर उनके रक्षण, पालन-पोषण और नस्ल सुधार के लिए देशभर में सैकड़ों गौशालाओं की स्थापना की। राजस्थान के निवाई, कोटा, श्रीगंगानगर, म.प्र. के इंदौर, भोपाल, सागर, गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, महाराष्ट्र के नाशिक, औरंगाबाद, उत्तरप्रदेश के आगरा, लखनऊ, उत्तराखंड के ऋषिकेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू आदि में कुल 60 से अधिक गौशालाएँ संचालित हैं।
इन गौशालाओं में 10,000 से अधिक गायों का संरक्षण किया जा रहा है। यहाँ गौमूत्र से औषधि, गोबर से केंचुआ खाद, और गोझरण अर्क तैयार किया जाता है, जो मानव और भूमि के लिए रामबाण औषधि सिद्ध हो चुके हैं।
गाय के गोबर, चंदन और सुगंधित जड़ी-बूटियों से बनी ‘गौ-चंदन धूपबत्ती’ वातावरण को शुद्ध-सात्विक बनाती है। पूज्यश्री की प्रेरणा से इन गौशालाओं का संचालन केवल आश्रम के सेवकों के द्वारा नहीं, अपितु हजारों ग्रामवासियों और गौ-प्रेमियों के सहयोग से हो रहा है।
बापूजी का यह गौसेवा अभियान भारतीय संस्कृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य रक्षा का एक जीता-जागता उदाहरण बन चुका है।